ये दिवाली ऐसी हो, जिसमे सबकी खुशियाँ शामिल हो,
Diwali article:दिवाली ऐसी हो, जिसमे सबकी खुशियाँ शामिल हो,
Diwali article:दिवाली, रौशनी का त्योहार खुशियों का त्योहार, उत्सव मनाने का त्योहार खुशियाँ बाँटने का त्योहार,
अपनी खुशियों और मस्ती में हम इतने खो जाते हैं की हम अपने आस-पास के किसी भी चीजो को न देख पाते न समझ पाते।
दिवाली बहूत ही खूबसूरत त्योहार है, अमावस की अँधेरी रात को दीयों की रौशनी में जगमगाता..हर घर में जैसे आसमा छोड़ चाँद उतर आया हो..
हर तरफ रौशनी हर तरफ खुशियाँ…पर कोई है जो डरा हुआ है..अपने घरों में भी सुरक्षित न महसूस कर पा रहा खुद को…
.छुप-छुप कर वो इधर-उधर खुद को बचा रहा है..
कौन है वो देखा कभी…सब तो खुश हैं..अमीर गरीब सबने अपने-अपने अनुसार उत्सव मनाया है..सब एक-दूसरे को बधाइयाँ दे रहे .कौन खुश नहीं है?
हमारे आस-पास के जीव-जन्तु, मासूम पंछी जो दूर गगन में उड़ते थके अपने घर लौटते हैं..सुबह की किरणों संग मुस्काने को…
क्या हमारी खुशियों पर उनका हक़ न बनता..उन्हें भी तो भगवान ने ही भेजा है साथ हमारे जीने को.
क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता की हम अपनी खुशियों में उनको भी शामिल करे या कम-से-कम इतना तो ख्याल करे कि हमारी वजह से उन्हें कोई कष्ट न हो….
क्यों हम अपने स्वार्थ में आज इतने अंधे हो गए कि हम बस खुद को ही देख पाते हैं..पटाखों के शोर में हम बहरे के साथ क्या अंधे भी हो गए है..
कितने ही मासूम पंछी जो डर से अँधेरी रात को उड़ जाते है ..कुछ ग़ुम जाते कुछ शायद वहाँ चले जाते जहाँ मनुस्य उनतक न पहुंच सके…..
कुत्ते, बिल्ली, न जाने कितने जीव जो हमारी रखवाली करते…इस शोर से डरकर भागते हैं..और हम निर्दयी की तरह उन्हें भागता देख उनपर हस्ते हैं..
उनकी निर्बलता का मजाक उड़ाते हैं…हमने अपने स्वार्थ की वजह से आज खुद को प्रकृति का सबसे बड़ा शत्रु बना लिया है..
अगर हम पटाखे न फोड़े शांतिपूर्वक खुशिओं की दिवाली मनाए तो क्या वो दिवाली नही होगी..होगी वही दिवाली होगी जिसमे पूरी पृथ्वी शामिल होगी…
सब खुश होंगे…..खुशियाँ बांटने से बढ़ती हैं….. एक दिवाली ऐसी हो, जिसमे सबकी खुशियाँ शामिल हो,
चाहे हो मनुस्य या पंछी या फिर हो कोई जीव सब मिल कर जो उत्सव मनायें, स्वर्ग से भी सुंदर धरा सजायें.
लेखिका:अंजली शर्मा